सिक्ख -पंथ

By '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: on 4/17/2009 06:13:00 pm , , , , , ,

अगर मैं यह कहूँ कि '' सिक्ख '' पंथ इस सृष्टि का प्राचीनतम पंथ है तो आप मेरे कथन पर आश्चर्य भी प्रकट करेंगे
प्राचीनतम ''गुरु शिष्य'' परम्परा के क्रम में आज का ''सिक्ख '' पंथ अस्तित्व में आया और गुरु-शिष्य संबंधों को शाश्वत कर गया |

  • '' सिक्ख पंथ'' का उद्भव प्रथम गुरु - महाराज '' गुरु नानक देव जी '' [१४६९-१५३९] के
  • जीवन काल में ही होगया था जो अगले आठ गुरुओं के जीवन काल के साथ परवान चढ़ता रहा और नवे बादशाह गुरु तेग बहादुर जी महाराज जी के जीवन काल में इतनी ऊँचाई तक पहुँच गया कि समाज के सताए हुए लोग उनके द्वारे '''त्राहि-माम् ;; त्राहि-माम् ''' करते हुए पहुँचने लगे थे, और उन्हों ने भी शरणागतों को निराश नही किया ; ''' उनकी रक्षा हेतु अपना बलिदान दे ; अपना शीश दे समाज में त्याग और धर्म का मर्म स्थापित किया '''|
  • दशम गुरु महाराज गोविन्द सिंह जी द्वारा उसी सिक्ख -पंथ को परमार्जित कर उसी सिक्ख -पंथ के अंतर्गत खालसा-समाज का निर्माण कर सिक्खी को पूर्ण पंथ का दर्जा एवं सम्मान दिला दिया गयाउन्होंने किसी सामाजिक- मान्यता एवं परम्परा एवं समाज के पंथ बनने की प्रमुख शर्तों की पूर्ति करते हुए , अभी तक नानक शाही सिक्ख कहलाने वाले समाज को ''विधान : निशान :कमान : प्रधान : स्थान ''पाँचों लाक्षणिक - प्रमाण { अंग }दे पूर्ण पंथ बना दिया

    • प्राचीन गुरु-शिष्य परम्परा में बताये गयी हर उस बात को मानना पालन करना जिनका उपदेश ' गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोविन्द सिंह जी ' तक दसों गुरु दे गए हैं का अनुपालन करना प्रत्येक सिक्ख का कर्त्तव्य है । पूरे समाज को तीन अंगों में बांटा गया

    {1} सिक्ख - संगत :- -उन सभी को कहा गया जो गुरु के सामान्य उपदेशों का पालन करते हुए '' ग्रन्थ साहेब '' को ग्यारहवां एवं अन्तिम गुरु मानने के अतिरिक्त इनके लिए अन्य कोई हार्ड एंड फास्ट नियम नही है जिस कारण से यदि वे ' सनातन-धर्मी नही है , तब भी सिक्ख समाज या संगत में भागीदार हो सकते हैं ,यह उन्हें अपने व्यक्तिगत धर्म के अनुपालन से नही रोकता ।

    {2} "खालसा समाज :- को ही सिक्ख समाज : सिक्ख संगत का व्यवस्थापक अधिकार प्राप्त हैं '' इसी खालसा - समाज की स्थापना दसवें गुरु ,गुरु गोविन्द सिंह जी ने की थी । " इस खालसा संगत या समाज के लिए कुछ नियम निर्धारित हैं उनका पालन किया जाना अनिवार्यता है ।

    {3} निहंग खालसा :--सवें गुरु महराज ने अपने उस युग की परम्परा के अनुसार पूरे खालसा संगत के एक अंश को 'धर्म -धार्मिक -भक्तों की रक्षा हेतु नियमित सेना का रूप देकर उन्हें ' ''निहंगसिक्ख '' का नाम दिया ; ये सदैव सैनिक गणवेश में रहते हैं । { उपरोक्त तीनो तथा अन्य तथ्यों का उल्लेख मैं अपने अलग ब्लॉग में विस्तार से करूँगा }

    • एक "खालसा "के लिए निर्धारित पञ्च ककार '''केश :कंघ :कड़ा :कच्छ :और :कृपाण '''ही वे प्रतीक - चिन्ह हैं जिन्हें धारण करना हर ''खालसा सिक्ख ''के लिए अनिवार्य होता है एक पूर्ण सिक्ख गुरुद्वारे में गुरु -ग्रन्थ साहिब जी के समक्ष अमृत पान कर पांचो प्रतीक ककार ग्रहण कर खालसा सजता है कोई भी सिख उपरोक्त पञ्च ककार धारण करने के लिए स्वतन्त्र तो है , परन्तु जब तक वह ग्रन्थ-साहेब को साक्षी मान पञ्च - प्यारों प्रदत अमृत - पान नही करता वह खालसा कहलाने अधिकारी नही हो सकता । यहाँ तक स्वयं खालसा-पंथ के प्रवर्तक श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने भी नियमों एवं परम्परा का पालन किया '' प्रथम पञ्च -प्यारों को अमृत छकाने के बाद उन्होंने उन उनके हाथ से अमृत -पान खालसा साज सजाया था ।

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