'' ज्योतिष्य -विज्ञान का अध्ययन - 1 ''

By '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: on 7/23/2009 11:46:00 am ,
'' ज्योतिष्य -विज्ञान का अध्ययन - 1 ''
[[ ए स्टडी इन ज्योतिष्य विज्ञानं ]]
" जातकी - ज्योतिष्य का कार्य- आधार क्या है "
[[ The Basis of Personal -Horoscopy ]]

आईये अब ज्योतिष्य-विज्ञानं का अध्ययन आरंभ करते हैं |सर्वप्रथम मैं ही आप की ओर से एक प्रश्न हवा में उछलता हूँ ,:--

" जातकी - ज्योतिष्य का कार्य- आधार क्या है "?
उत्तर तो मुझे ही देना हैं !

वास्तव में जो जातकी- ज्योतिष्य का का कार्य - आधार है वही सम्पूर्ण ज्योतिष्य का कार्य-आधार भी है |

किसी विशिष्ट काल-खंड या समय पर ,यथा ''किसी के जन्म - समय पर '' जन्म-स्थान से सुदूर अन्तरिक्ष में देखने पर किसी पूर्व निर्धारित विन्दु जो ज्योतिष्य में '' भचक्र अथवा राशिः - चक्र '' कहा गया है '' , के सापेक्ष नौ [ 9 ] ज्योतिषीय ग्रह जिस -जिस राशिः की सीध में दिखें उस ग्रह को तात्कालिक रूप से उसी राशिः में स्थित मान कर , तथा उस स्थान- विशेष [[ जो यहाँ पर जन्म-स्थान कहा गया है ]] के सटीक ''गणितीय '' पूर्वीय-क्षितिज [[ Horizen ]] पर राशिः- चक्र [12 राशियों के चक्र ] की जो भी राशिः उदित हो रही होती है उसे केन्द्र बना अर्थात आरम्भिक बिन्दु [[ लग्न या Ascendant ]] मान , बारह [ 12 ] विभागों का ,जिसमें हर विभाग को '' भाव '' कहते हैं , एक चक्र बना कर और लग्न को प्रथम भाव मानते कर ही भूत - भविष्य - वर्तमान की संभावनाओं का आकलन करने पर प्राप्त अन्तिम निष्कर्षों के आधार पर फलित कहना ही जातकी - ज्योतिष्य का कार्य-आधार है |
उपरोक्त से स्पष्ट है कि जातकी ज्योतिष्य एवं ज्योतिष्य के '' तीन आधार स्तम्भ है , जो क्रमशः
[ 1 ] नौ ( 9 ) ज्योतिषीय ग्रह ,[ 2 ] बारह ( 12 ) भावों का भाव चक्र जिसमें लग्न प्रथम भाव होता है तथा
[ 3 ] बारह ( 12 ) राशियों का भचक्र या राशिः चक्र ;


किसी भी जन्मांग में किसी भी ग्रह की किसी स्थिति इस प्रकार बताई जाती है ,'' अमुक ग्रह ( ग्रह का नाम ) , अमुक राशिः ( राशिः का नाम ) का हो कर ,जन्म लग्न से अमुक भाव ( लग्न से गणना पर जो भाव क्रमांक आवे ) में बैठा है |

अगले अंक में ज्योतिषीय ग्रहों के गुण : धर्म और कारकत्व के बारे में संक्षेप में अध्ययन करेंगे |

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